सुक्खू का आगाज तो बेहतर है
त्वरित टिप्पणी
अश्वनी वर्मा
संपादक प्रचण्ड समय
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सूक्खू प्रशासनिक अव्यवस्थाओं को सुधारने में जल्दी में हैं। व्यवस्थाएं अगर इतनी बिगड़ी हैं तो उन्हें तत्काल सुधारना किसी भी मुख्यमंत्री के लिए जरूरी है। यह उनकी जिम्मेवारी भी है। जिन टैंडरों को नए सिरे से करने की वकालत नए मुख्यमंत्री ने की है, वे एक महके से ताल्लुक रखती हैं, जिसमें पहले से ही भ्रष्टाचार की बू आ रही थी। न्याय न केवल प्रदेश की जनता को मिलना चाहिए बल्कि वे कम समय में मिलता नजर आना चाहिए, वरन ऐसे न्याय का कोई औचित्य बनता नहीं है।
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के ट्वीट ये दर्शाते हैं कि बिना मंत्रिमंडल के गठन ऐसे निर्णय नहीं होने चाहिए। इनमें राजनीति प्रतिशोध की बू आती है। जिन महकमों पर पहले से ही उंगली उठती रही हो , उनमें सुधार की गुंजाइश का फर्ज तो मुख्यमंत्री को निभाना ही होगा। वरना पारदर्शिता की बात ही गौण हो जाती है। भ्रष्टाचार पर अगर निशाना है तो इसे राजनीतिक प्रतिशोध नहीं कहा जा सकता। इसमें बदले की भावना कहां है। जहां तक पिछले छह महीनों के फैसलों की समीक्षा यह तो हर सरकार की रिवायत में शामिल रहा है। पर सुक्खू शायद थोड़ा सा आगे बढ़े हैं। समीक्षा नौ महीनों के कार्यों की हो रही हैं। बाबूशाही बड़ी समझदार हो गई है। उसे पता है कि छह महीने की समीक्षा तो हर नई सरकार करती है, नौ महीनों की कौन करेगा, इस कारण गड़बड़ एक साल पहले से होनी शुरू हो जाती है। मुख्यमंत्री ने भी दृष्टि दूर तक फैलाई है और समीक्षा पिछले नौ महीनों से हो रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर की यह बात तो सही है कि कालेज, स्कूल,अस्पताल,पुलिस स्टेशन, पुल सड़क , पेयजल येाजनाओं जैसे कामों को लटकाने-अटकाने- भटकाने काम शुरू हो गया है। अगर इन योजनाओं पर सवाल चिन्ह है तो देरी जरूर हो सकती है लेकिन सुक्ख्ूा को इसऔर ध्यान देने की आवश्यकता है कि काम लटके न, इसके लिए तुरंत वैकल्पिक योजनाअों पर काम होना चाहिए और उन कार्यों में तेजी लाने के लिए अतिरिक्त बजट का प्रावधान करना चाहिए। ये संकेत नहीं जाने चाहिए कि विकास कार्यों को इस कारण लटकाया जाने लगा है कि प्रदेश की माली हालत कमजोर है।
मुख्यमंत्री ने प्रशासनिक अधिकारियों से यह कहा है वे तबादलों की जल्दी में नहीं है। पर बाबू शाही को फैंटने की आवश्यकता तो मुख्यमंत्री को तुरंत महसूस करनी होगी। क्योंकि कई अफसरों की फितरत में काम करना नहीं है लेकिन वे हर सकरार में तलाई खाने की जुगत भिड़ा लेते हैं। कर्म प्रधान अफसरों को तरजीह देने की जरूरत रहेगी।