Home » मंडी में टांकरी लिपि पर सेमिनार: टांकरी व्यापारिक और राजकाज के साथ-साथ प्राचीन ग्रंथों व शिलालेखों से जुड़ी लिपि: जगदीश कपूर -एक से दूसरी जगहों के लिए यात्राओं से फैलती रही है सभ्यताएं ,भाषा व बोलियां

मंडी में टांकरी लिपि पर सेमिनार: टांकरी व्यापारिक और राजकाज के साथ-साथ प्राचीन ग्रंथों व शिलालेखों से जुड़ी लिपि: जगदीश कपूर -एक से दूसरी जगहों के लिए यात्राओं से फैलती रही है सभ्यताएं ,भाषा व बोलियां

मंडी में टांकरी लिपि पर सेमिनार: टांकरी व्यापारिक और राजकाज के साथ-साथ प्राचीन ग्रंथों व शिलालेखों से जुड़ी लिपि: जगदीश कपूर -एक से दूसरी जगहों के लिए यात्राओं से फैलती रही है सभ्यताएं ,भाषा व बोलियां

राजतंत्र के जमाने में राजकाज और व्यापार की लिपि के रूप में वजूद में आई टांकरी लिपी को लेकर रविवार को भारतीय सांस्कृति निधि इंटेक के मंडी पेप्टर की ओर से मंडी के होटल राजमहल में दुर्लभ टांकरी लिपि पर एक व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर एसडीएम मंडी रितिका जिंदल ने बतौर मुख्यातिथि उशिरकत की। इस मौके पर टांकरी विशेषज्ञ डॉ जगदीश कपूर ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि टांकरी इस पहाड़ी क्षेत्र में महाजनी लिपि के रूप में जानी जाती है। जबकि एक समय में रियासत का राजकीय कार्य भी टांकरी लिपि में होता रहा है। उन्होंने कहा टांकरी लिपि का उदभव संभवत: एक हजार ईसा पूर्व हुआ है। माना जाता है कि टांकरी, देवनागरी और गुरमुखी शारदा लिपि से निकली हैं। उन्होंने दावा किया है कि टांकरी गुरमुखी से करीब पांच सौ साल पुरानी लिपि है। उन्होंने कहा कि टांकरी के सरक्षण के लिए लोगों द्वारा कार्यशालाएं लगाकर इस लिपि को दोबारा पुनर्जीवित कर आम जन तक पहुंचाने के प्रयास होने चाहिए। उन्होंने कहा कि  वर्तमान में भी देवी देवताओं के पुराने वाध्य यंत्रो से लेकर मोहरों, मंदिर के शिलालेखों , स्थानीय तंत्र शास्त्र , देवताओं से जुड़ी गण कथाएं और आयुर्वेदा अधीन स्थानीय उपचार पद्यति के अधिकतर श्लोक व लेखों में टांकरी लिपि को पहाड़ी भाषा व बोलियों में अंकित किया गया गए जिसे बिना टांकरी लिपि सीखे नहीं पढ़ा जा सकता है। वहीं पर साहित्यकार मुरारी शर्मा ने कहा कि टांकरी व्यापारिक और राजकाज की भाषा रही है, यह व्यापारियों के माध्यम से यहां तक पहुंची है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर देखा गया है कि दुनिया भर की सभ्यताएं, भाषा व बोलियां एक जगह से दूसरी जगहों तक यात्राओं के माध्यम से पहुंची हैं। सिल्क रूट का केंद्र रहने के अलावा गुमा व द्रंग की नमक खानों से चटटानी नमक ले जाने के लिए घोड़े खच्चरों और ऊंटों के काफिलों को लेकर व्यापारी होशियारपुर , लद्दाख,तिब्बत और यारकंद आदि से ऐतिहासिक गांव नगरोटा के आसपास डेरा डाले रहते थे। इस अवसर पर डा. आरके राजू ने कहा कि रियासतों के समाप्त होने के साथ ही टांकरी का वजूद खत्म हो गया। इस मौके पर टीएल वैद्य, डा. चिंरजीत परमार, साहित्यकार कृष्णचंद्र महादेविया, जिला भाषा अधिकारी प्रोमिला गुलेरिया, इंटेक मंडी चेप्टर के अध्यक्ष नरेश मल्होत्रा, सह अध्यक्ष अनिल शर्मा छुछ़ु, केके शर्मा ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि देश भर में एक बार श्रेष्ठ भारत और अमृत महोत्सव के अंतर्गत भारत के विभिन्न लिपियों और भाषाओं बोलियों के संरक्षण संवर्धन के लिए विभिन्न कार्यक्रम किए जा रहे हैं।

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