मंडी। दस महीने के अंदर ही प्रदेश के दो बड़े दिग्गज राजनीतिज्ञ चले गए। वीरभद्र सिंह 8 जुलाई 2021 और पंडित सुख राम का 11 मई 2022 को निधन हो गया। दोनों ने ही प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपनी राजनीतिक पहचान बनाई थी। दोनों ही नेताओं ने 1962 में राजनीति में कदम रखा और लगभग 6 दशक तक राजनीति में बने रहे। सुख राम के हिविकां व आजाद कार्याकाल के लगभग 6 साल को निकाल दें ंतो दोनों ही कांग्रेस से ही जुड़े रहे। दोनों में किसका कद छोटा किसका बड़ा इस बात को दरकिनार कर दें तो भी इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि वीरभद्र सिंह व सुख राम दो ऐसे चेहरे हिमाचल की राजनीति में कांग्रेस के रहे हैं जिन्हें प्रदेश के हर क्षेत्र का हर व्यक्ति अच्छी तरह जानता पहचानता है। इन दोनों ने ही अपनी लोकप्रियता का लोहा भी साबित किया है। दोनों में छत्तीस का आंकड़ा रहते हुए राजनीतिक कद सबसे उपर ही रहा है। अब वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हुए खालीपन की बात करें तो प्रतिभा सिंह ने आगे आकर उनके निधन से पैदा हुई ,सहानुभूति, के सहारे मंडी लोकसभा का उपचुनाव जीत लिया और फिर से यह परिवार बेटे के विधायक और पत्नी के सांसद बन जाने से राजनीति की अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा हो गया। रही सही कसर पार्टी ने प्रतिभा सिंह को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर पूरी कर दी और अब कई और संभावनाएं भी उनको लेकर पैदा कर दी हैं। अब पंडित सुख राम के चले जाने के बाद भी एक सवाल खड़ा हो रहा है कि उनके खालीपन को कौन भरेगा। पंडित सुख राम के लाख प्रयास के बावजूद भी उनके पोते आश्रय शर्मा पिछला लोक सभा चुनाव बुरी तरह से हार गए। अनिल शर्मा भाजपा में जाकर विधायक और मंत्री बने मगर अब सिर्फ विधायक हैं और वह भी केवल तकनीकी तौर पर ही भाजपा में हैं जबकि दिल उनका भी ,कांग्रेस, में भी अटका हुआ है। पंडित सुख राम के बीमार होने से लेकर उनके अंतिम संस्कार और शोक जताने तक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक कूटनीतिज्ञ वाली भूमिका निभाई है। दिल्ली एम्स ले जाने के लिए अपना हैलीकाप्टर तक दे दिया और फिर लगातार हाजिरी भर कर एक संदेश दे दिया। लगे हाथ राष्ट्ीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी अनिल शर्मा व उनके परिवार से मिलने पहुंच गए। भाजपा के प्रदेश प्रभारी अविनाश खन्ना से लेकर तमाम बड़े नेता अनिल शर्मा के घर पर शोक हाजिरी भर रहे हैं। यही क्रम कांग्रेस की ओर से भी है। विपक्ष के नेता व अन्य लगभग सभी दिग्गज इस मौके पर हाजिर रहे। जो पहले नहीं आ सके वह अब आ रहे हैं। अब पंडित सुख राम का परिवार वीरभद्र सिंह के परिवार की तरह निधन से पैदा हुई सहानुभूति को कैसे सामने आ खड़े विधानसभा चुनाव में भुनाता है इस पर सबकी नजरें टिक गई हैं। जिस तरह से दोनों दलों के दिग्गज ,सहानुभूति, व ,शोक, जताने अनिल शर्मा के घर बाड़ी गांव पहुंच रहे हैं उससे लगता है स्वयं पंडित परिवार अपनी अगली रणनीति को लेकर कन्फयूज हो गया है। उसे इस शोक समय से फारिग होकर इस पर गंभीर चिंतन करने की जरूरत पड़ सकती है क्योंकि अभी प्रदेश में अगली सरकार किसकी बनेगी यह भी कोई ,एक्जिट पोल, नहीं हो पाया है। माना जा रहा है कि अगली सरकार की संभावनाएं देख कर ही यह परिवार निर्णय लेगा मगर देखना यही होगा कि जिस तरह वीरभद्र के चले जाने से पैदा हुआ खालीपन कांग्रेस की मदद से उनके परिवार ने काफी हद तक भर दिया है उस तर्ज पर सुख राम परिवार कितना कर पाता है। इसके साथ ही यह सवाल है कि कांग्रेस में वीरभद्र और सुख राम के समकक्ष कौन नेता अपने को फिट कर पाएगा जो इनकी तरह एक बड़े जनमानस को स्वीकार्य हो।
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