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पुरानी पैंशन बहाल-त्‍वरित टिप्‍पणी

 

अश्‍वनी वर्मा- संपादक प्रचण्‍ड समय

हिमाचल प्रदेश की सुखविंद्र सिंह सुक्‍खू की सरकार ने अपने वायदे अनुसार कर्मचारियों के लिए पुरानी पैंशन योजना लागू कर दी है। साथ अपनी सरकार को नाम भी सुख की सरकार दिया है। कर्मचारियों में खुशी की लहर दौड़नी स्‍वाभाविक है। जहां केन्‍द्र सरकार ने प्रदेश  सकरार का जमा पैसा देने से इन्‍कार किया है, वहीं सुक्‍खू ने डीजल के दाम बढ़ाकर इस पैसे का बंदोबस्‍त कर लेने का दावा भी किया है। पहले साल ही पुरानी पैंशन लागू करने पर 900 करोड़ का वित्‍तीय बोझ सरकार को सहना पड़ेगा। चुनावी वायदा कांग्रेस ने पुरानी पैशन बहाल करने का किया था। पहली मंत्रिमंडल की बैठक में इस वायदे को अमली जामा सुक्‍खू सरकार ने पहना दिया है। अड़चनों और चुनौतियों के बाद ऐसा फैसला करना सरकार की दृड़ इच्‍छा शक्ति को दर्शाता है। किसी भी सरकार को अपना एजेंडा लागू भी करना चाहिए। सभी सरकारें हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों को वित्‍तीय लाभ देने की कोशिशें करती हैं। लेकिन ये कोशिशें चुनावी सालों में ही पूर्ण होती हैं। सुक्‍खू सरकार पहली सरकार बन गई है जिसने कर्मचारियों के हित सरकार बनते ही साधने की कोशिश की है। यह अलग बात  है कि  कांग्रेस को इसका फायदा अगले साल लोकसभा के चुनावों में मिल सकता है। पर इसके विपरीत असर भी देखने को मिलेंगे क्‍योंकि जब केन्‍द्र के हाथ हिमाचल के लिए खड़ें हों तो इस तरह का वित्‍तीय घाटा जनता की जैब से ही पूरा करना पड़ेगा। कहा भी गया है कि डीजल पर वैट की रियायत को कम करके इस घाटे को पूरा करने की कोशिश की गई है। सुक्‍खू ने प्रेस कान्‍फ्रेंस में संकेत भी दिए हैं कि प्रदेश की माली हालत को ठीक करने के लिए सख्‍त कदत उठाने की भी जरूरत है। इसके लिए उन्‍होंने प्रेस और नागरिकों के सहयोग की अपेक्षा भी की है। जाहिर है कि जनताकी जेब पर सरकार का सीधा हाथ पड़ने जा रहा है। डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई का अहसास तो पहले ही हो रहा है। यहां यह काबिलेगौर है कि हिमाचल प्रदेश पर 75 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है और इसके लगाातार बढ़ने की भी आशंका है। फिर प्रदेश में बेरोजगारी का आंकड़ा भी गुणात्‍मक रूप में बढ रहा है। उससे निपटना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौति है। वैसे सुक्‍खू ने संकेत दिए कि रोजगार के अवसर चरणबद्घ तरीके से सृजित किए जाएंगे। पर इससे कैसे निपटा जाएगा, अभी कहना मुश्किल है।  लेकिन इस बात पर गौर करना होगा कि कर्मचारियों के अलावा भी ऐ बहुत बड़ वर्ग है जिनकी माली हालत बहुत खराब है। नोटबंदी और जीएसटी ने भी व्‍यापारी वर्ग की कमर तोड़ी हुई है। ऐसी हालत में एक वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए दूसरे वर्ग की जेब पर हाथ आम लोगों को परेशान अवश्‍य करेगा। लोकलुभाने वायदे किसी की कीम पर पूरे नहीं होने चाहिए। यही कारण है कि पहाड़ सी चुनौतियों का साना सुक्‍खू सरकार को करना होगा। सख्‍त फैसले देखेन को मिलेंगे। पर फिलवक्‍त कर्मचारियों की वाहवाही तो सुक्‍खू सरकार ने लूटी ही है।

 

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