Home » आइआइटी मंडी के शोधकर्ताओं ने कुदरती आपदाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक विकसित की, हिमालयन रीजन के लिए हो सकती है वरदान साबित

आइआइटी मंडी के शोधकर्ताओं ने कुदरती आपदाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक विकसित की, हिमालयन रीजन के लिए हो सकती है वरदान साबित

आइआइटी मंडी के शोधकर्ताओं ने कुदरती आपदाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक विकसित की, हिमालयन रीजन के लिए हो सकती है वरदान साबित


बीरबल शर्मा
मंडी, 21 फरवरी  भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम बुद्धिमता और मशीन लर्निंग (एआई एंड एमएल, का उपयोग करके एक नया एलगोरिद्म विकसित किया है जिससे प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान को अधिक सटीक बनाया जा सकता सकता है। आईआईटी मंडी के स्कूल आफ सिविल एंड एंवायरमेंटल इंजीनियरिंगके एसोसिएट प्रोफेसर डा. डेरिक्स प्रेज शुक्ला और तेल अबीब यूनिवर्सिटी (इजराइल के डा शरद कुमार  गुप्ता द्वारा विकसित इस एलगोरिद्म से भूस्खलन संवेदी मैपिंग संबंधी डाटा असंतुलन की चुनौतियों से निपटा जा सकता है जो किसी क्षेत्र में भूस्खलन होने की संभावना को दर्शाते हैं। इनके अध्ययन के परिणाम हाल ही में लैंडस्लाइड पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
डॉ शुक्ला की टीम ने एक नया एमएल एलगोरिद्म विकसित किया है जो एलगोरिद्म के प्रशिक्षण के लिये डाटा असंतुलना के मुद्दे का समाधान करता है । यह दो नमूना तकनीक.. इजी इनसेंबल (सरल स्थापत्य, और बैलेंस कासकेड (संतुलित जलप्रपात) का उपयोग से भूस्खलन मैपिंग में डाटा असंतुलन के मुद्दों से निपटने में करता है। उत्तर पश्चित हिमालय उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी बेसिन में वर्ष 2004 से 2017 के बीच हुए भूस्खलन के आंकड़ों का
उपयोग मॉडल के बारे में प्रशिक्षण एवं पुष्टि के लिये किया गया था। इसके परिणाम से यह स्पष्ट हुआ कि एलगोरिद्म से एलएसएम की सटीकता काफी बेहतर हुई खासतौर पर तब जब उनकी तुलना सपोर्ट वेक्टर मशीन और आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क जैसी पारंपरिक मशीन शिक्षण तकनीक से की गई।
अपने कार्यो की विशिष्टता के बारे में स्कूल आफ सिविल एंड एंवायरमेंटल इंजीनियरिंगके एसोसिएट प्रोफेसर डा. डी
पी शुक्ला ने कहा, ‘‘यह नया एलगोरिद्म एमएल मॉडल में डाटा संतुलन के महत्व को रेखांकित करता है और इस क्षेत्र
में महत्वपूर्ण विकास के लिसे नयी प्रौद्योगिकी की क्षमता को प्रदर्शित करता है। यह बड़ी संख्या में आंकड़ों की जरूरत
के महत्व को रेखांकित करता है ताकि सटीक तरीके से एमएल मॉडल को प्रशिक्षित किया जा सके, खास तौर पर
भूगर्भीय आपदा और प्राकृतिक आपदा के मामलों में महत्वपूर्ण है जहां काफी कुछ दांव पर लगा होता है और मानव
सुरक्षा खतरे में होते हैं।’’
शुक्ला का मानना है कि यह अध्ययन एलएसएम और अन्य भूगर्भीय मैपिंग और प्रबंधन के क्षेत्र में नये आयाम खोलता
है। इसे बाढ़,हिमस्खलन,कठिन मौसम घटनाओं,रॉक ग्लेशिसर और
दो वर्षो से शून्य डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर जमी अवस्था वाले स्थान या पेरमाफ्रोस्ट जैसी अन्य प्राकृतिक
घटनाओं के मैपिंग में उपयोग की जा सकती है ताकि जानमाल की सुरक्षा के समक्ष खतरे को कम करने में मदद मिल

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