चंडीगढ़,24,फरवरी। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दायर एक याचिका से हरियाणा में बड़ा पेंशन घोटाला होने की आशंका सामने आई है। याचिका में कुरुक्षेत्र के शाहबाद क्षेत्र में मुर्दो के नाम पेंशन राशि का वितरण किए जाने का मामला उठाया गया है।हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीर बताया है। साथ ही राज्य के समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव समाज कल्याण और पुलिस महानिदेशक विजिलेंस को अब तक की गई कार्रवाई को लेकर हलफनामा दायर करने की हिदायत दी है। इसके लिए 12 हफ्ते का समय दिया गया है।
आरटीआई कार्यकर्त्ता राकेश बैंस ने अपने वकील प्रदीप रापडिया के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर करके पूरे हरियाण में पेंशन वितरण में हुए घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन सरपंचों व नगर पालिका के पार्षदों ने समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत करके ऐसे लोगो को पेंशन वितरण की जो स्वर्ग सिधार चुके हैं और सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाया गया है।
हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण विभाग को 12 हफ्तों में विस्तृत हलफनामा दायर करते हुए समाज कल्याण विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों व पार्षदों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई का विवरण देने को कहा है। यह चेतावनी भी दी है कि यदि संतुष्टिजनक जवाब नहीं दिया गया तो घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी जाएगी ।
याचिकाकर्ता के वकील प्रदीप रापडिया ने हाईकोर्ट को बताया कि सिर्फ शाहाबाद (कुरुक्षेत्र) में मनगढ़ंत एफआईआर दर्ज करके व 13,43,725 रुपए की राशि सरकारी खजाने में जमा कराई गई। इस घोटाले को दबाने के इरादे से पुलिस ने पूरे घोटाले को अंजाम देने के जुर्म में सिर्फ एक रिटायर्ड सेवादार व क्लर्क के खिलाफ निचली अदालत में बोगस व जाली चालान पेश कर दिया।
रापडिया के हाईकोर्ट को बताया कि मामले में कैग रिपोर्ट के अलावा तीन विभागीय जांच हुई और तीनों जांचों में शाहबाद के पार्षदों और जिला समाज कल्याण अधिकारी सहित अन्य अधिकारियों को दोषी पाया गया। जिन पार्षदों ने ऐसे पेंशन धारकों की पहचान की जो पहले ही मृतक हो चुके हैं और सरकारी खजाने से पेंशन राशि निकालने में मदद की है। उनकी सूची खुद समाज कल्याण विभाग ने पुलिस को भेजी थी।
इस पूरे मामले में हैरान करने वाली बात है कि सभी दोषी पार्षदों व जिला समाज कल्याण अधिकारी को चालान में सरकारी गवाहों की सूची में रखा गया है, जबकि याचिकाकर्ता जिसकी शिकायत पर तीन जांचे हुई और इतना बड़ा घोटाला उजागर हुआ उसको सरकारी गवाहों की सूची से बाहर कर दिया गया है। याचिकाकर्ता ने रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से पुलिस अधीक्षक व थानेदार को को पत्र लिखकर मामले में हर संभव सहायता देने की पेशकश की, लेकिन मामले को दबाने की नीयत से पुलिस ने ना तो उससे पूछताछ की ना ही उसको सरकारी गवाह बनाया।
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