आज की राजनीति का सबसे दुखद पहलू है कि तंगदिल किस्म के लोग राजनीति में आ रहे हैं। दावे चाहे जितने कर लिए जांय, इस देश बड़े दिलवाले नेता ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। दुर्भाग्य से इन छोटे दिलवालों को जगह-जगह बहुत बड़ा दिखाया जाता है। असल में बड़े दिलवाला वह होता है जो छोटी से लेकर बड़ी-बड़ी आलोचनाओं तक को सह ले और निंदा को अपने लिए सुधार का संकेत समझे। संत कबीर दास ने बहुत सोच-समझकर कहा था – ‘निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’ इसका अर्थ यह है कि जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने निकट रखना चाहिए। वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारा स्वभाव सुधारता है। विडंबना यह है कि आजकल लोग पहले से ही तरह-तरह के सुगंधित साबुन से इस कदर रोज धुलते हैं कि वे अपने आपको दूध से धुला समझने लगते हैं। ऐसे में उनकी आलोचना या निंदा हो तो वे भला कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? सो निंदा करनेवालों को ढूंढ – ढूंढकर उन पर कानूनी कार्रवाई की जाती है। यहां तक कि लेखकों, कलाकारों को भी नहीं बख्शा जाता जबकि वे निंदा कर धुलाई के कार्य में सदियों से ईमानदारी के इस कार्य में लगे हुए हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जैसे नेता दुर्लभ हैं जो स्वयं पर तीखा व्यंग्य कसने पर कार्टूनिस्ट को घर पर नाश्ते के लिए बुलाया करते थे। नेहरू अपने ऊपर किए गए व्यंग्य या कार्टून पर चिढ़ते नहीं बल्कि उसका आनंद उठाते थे। उन पर कार्टूनों के माध्यम से जिस शंकर ने सबसे अधिक व्यंग्य कसा, वे आगे चलकर उनके खास मित्रों में से एक बने। नेहरू ने उनसे कह रखा था कि मुझे कभी मत बख्शना। शंकर जिनका पूरा नाम के. शंकर पिल्लई था, कहते थे कि पंडित जी स्वयं उन पर और उनकी पार्टी पर किए गए तंज की मांग किया करते थे। नेहरू ने एक बार शंकर को धन्यवाद देते हुए कहा था कि सही मायने में आप ही हैं जिसने मुझे मेरी कमजोरियां बतलायीं। आज यदि शंकर, आरके लक्ष्मण जैसे कार्टूनिस्ट होते तो निस्संदेह काल कोठरी में होते। नेहरू के जमाने में क्यों जाएं, दस साल पहले तक व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट और अन्य लेखक खुलकर नेताओं पर उनके नाम सहित लिखा करते थे। आज वे डर डरकर संकेतों में लिखते हैं और यदि खुलकर लिखें तो संपादक डरकर नहीं छापते। बहरहाल अब जिन्होंने कसम ही खा ली हो कि हम नहीं सुधरेंगे, उन्हें लेखकों, कवियों, व्यंग्यकारों और कार्टूनिस्टों से क्या डरना। डर के आगे जीत है।
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