कांग्रेस पार्टी के वायनाड से सांसद राहुल गांधी को सूरत की न्यायिक कोर्ट द्वारा वर्ष 2019 में की गई एक टिप्पणी के लिए सुनाई गई सज़ा वर्तमान व्यवस्था पर आज एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
देशभर में न्यायिक वर्ग से जुड़े अनेक व्यक्तियों ने अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा कि जिस तरह से फैंसला देने से पूर्व त्वरित गति से मात्र एक महिने में सज़ा का ऐलान किया गया है । बुशैहरी ने कहा कि यह न केवल विपक्ष के लोकतान्त्रिक अधिकारों पर बल्कि भारत के संविधान के दो स्तम्भों, ‘लोकतंत्र व न्यापालिका’ पर भी तीखा प्रहार है।
जबकि दूसरी तरफ़ सत्तासीन सरकार का एक मंत्री सरेआम एक चुनावी सभा में ‘गोली मारो सालों को’ जैसी धमकीपूर्ण भाषा का व भाजपा सरकार की एक महिला सांसद अल्पसंख्यक वर्ग के नरसंहार की बात कहती हैं उन पर न तो कोई कानूनी कार्रवाई हुई न ही उनकी लोकसभा सदस्यता छीनी गई, बल्कि वह आज भी लोकसभा सदस्य हैं। भाजपाइयों के ऐसे अनेक अन्य प्रकरण व उदाहरण भी सार्वजनिक जीवन में सबके समक्ष हैं।
सबसे चिंताजनक बात यह भी है कि जिस तरह से लोकसभा स्पीकर ने सूरत कोर्ट का फ़ैसला आते ही विपक्ष के नेता को लोकसभा में अपना पक्ष रखने का मौका देने की बजाय राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त करने और में जल्दबाजी दिखाई व इसके दो दिनों पश्चात उन्हें सरकारी आवास भी खाली करने का नोटिस जारी कर दिया जिससे संदेह होता है कि यह सभी कुछ एक सोची समझी रणनीति के तहत हुआ है।
इस कार्रवाई को निश्चय ही राहुल गांधी व सम्पूर्ण विपक्ष को बदनाम करने व उनका समर्थन करने वालों को एक अपराधी की तरह प्रस्तुत करना लगता है। कांग्रेस पार्टी अपने समस्त कार्यकर्ताओं व प्रदेश के लोगों से आह्वान करती है कि सभी केन्द्र की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार की लोकतंत्र विरोधी नितियों और षड्यंत्र का विरोध करने के लिए एकजुट होकर सामना करें।
जबकि सार्वभौमिक सत्य यह है कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त करने की असली वजह उनके द्वारा लोकसभा सत्र में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाना व अडाणी जैसे पूंजीपतियों की कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए भाजपा सरकार द्वारा एसबीआई व एलाईसी इंश्योरेंस कंपनियों पर दबाव बना निवेश करने के खुलासों को सार्वजनिक करना था।  इसके साथ ही शैल कम्पनियों में 20 हज़ार करोड़ ब्लैकमनी से जुड़े प्रश्नों को लोकसभा में उठाना है।

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