-कमलेश भारतीय
भाजपा के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े गर्व से कहा कि भाजपा ऐसी पार्टी है जो लोकतंत्र की कोख से जन्मी है न कि परिवारवाद की कोख से । उनका सीधा निशाना कांग्रेस की ओर रहता है । इसीलिये तो कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रहे हैं और कांग्रेस मुक्त करते करते इसे नेता मुक्त भी करने की कोशिश में हैं । राहुल गांधी की संसद से सदस्यता की जल्दी रही और बंगले को खाली करने का नोटिस भी थमाने में देर नहीं लगाई । बेशक दांव उल्टा भी पड़ता दिखाई दे रहा है ।
फिलहाल बात करते हैं लोकतांत्रिक भाजपा की जो धीरे धीरे पारिवारिक पार्टी बनने की ओर अग्रसर है । आप खुद फैसला कीजिए कि हिमाचल में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर परिवारवाद का उदाहरण हैं या लोकतंत्र का ? इसी तरह आप मुम्बई की ओर आइये । पूनम महाजन लोकतंत्र से निकलीं या प्रमोद महाजन की बेटी होने के नाते ? मध्य प्रदेश आइये माधव राव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य किसकी कोख से आये हैं ? पूरा परिवार भाजपा में ! फिर कौन सा लोकतंत्र ? पंजाब में किसकी शरण में ? महाराजा कैप्टन अमरेंद्र सिंह और उनकी धर्मपत्नी प्रणीत कौर का साथ क्यों ? कितने और उदारहण चाहिये परिवारवाद के ? जल्द ही बांसुरी यानी सुषमा स्वराज की बेटी भी चुनाव मैदान में उतारी जा सकती है !
यही नहीं जो हंसराज हंस, रविकिशन, हेमामालिनी , मनोज तिवारी,विनोद खन्ना के बाद सन्नी !  न जाने कितने ही फिल्मी सितारे भाजपा में उतार लिये , जिस पर आखिरकार आर एस एस को भी एतराज हुआ जब सपना चौधरी को खींचकर भाजपा में लाये ! ये क्या कर रहे हैं राजनीति में ? क्या योगदान है इनका ? यह राजनीति को कौन सी दिशा में ले जा रहे हैं आप ?
जो पार्टी सिद्धांतों की, विचारधारा की पार्टी थी वह सरकारें गिराने के खेल को राष्ट्रीय खेल में बदल चुकी है और इतने कांग्रसियों को भाजपा में गंगा स्नान करवा कर शामिल कर चुकी है कि पचहत्तर प्रतिशत यह पार्टी कांग्रेसमय हो चुकी है तो यह लोकतंत्र की पालना कैसे करेगी ? अडाणी पर बहस को कैसे बर्दाश्त करेगी ? नहीं कर सकी न ! कौन सा लोकतंत्र बचा ? दलबदल की सेल राष्ट्रीय स्तर पर लगी रहती है । सबसे बड़ी बोली किसकी ? बताइये !
लोकतंत्र को अपनाइये , बचाइये और अच्छा उदारहण प्रस्तुत कीजिए ताकि आने वाली पीढियां आपको याद रखें ! नाम बदलने से किसी कौम का इतिहास बदलने की कोशिशें भी किस ओर इशारे करती हैं ? अमृत महोत्सव को अमृत महोत्सव ही रहने दीजिए !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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