राज्यसभा चुनाव के कारण कांग्रेस विधायक दल में हुई बगावत के बाद अब लोकसभा की चार सीटों के साथ विधानसभा की छह सीटों पर उपचुनाव घोषित होने से भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में विधायकों को चुनाव मैदान में उतरने से परहेज होगा। इसकी सबसे बड़ी वजह विधानसभा के भीतर दलीय स्थिति है। हालांकि छह कांग्रेस विधायकों को डिसक्वालिफाई करने के बाद अब हो रहे उपचुनाव से राज्य सरकार को राहत जरूर मिली है। उपचुनाव के बजाय यदि सुप्रीम कोर्ट से इन्हें स्पीकर के फैसले के खिलाफ स्टे मिल जाता, तो सरकार पर खतरा बढ़ जाना था। लेकिन उपचुनाव होने से भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए अब अपनी ताकत जनता के बीच में दिखाने का मौका है। कांग्रेस के इन छह विधायकों की बगावत के बाद और तीन निर्दलीय विधायक भाजपा के साथ जाने के बाद विधानसभा के भीतर दोनों दलों की स्थिति 34.34 पर आ गई थी।
इसमें से विधानसभा अध्यक्ष का वोट तभी काम आता है, जब मुकाबला टाई हो जाए। इसलिए स्टे मिलने से भाजपा की सदस्य संख्या ज्यादा होने की आशंका थी, लेकिन छह कांग्रेस विधायकों की डिसक्वालिफिकेशन और अब उपचुनाव के कारण कुल 68 सीटों का आंकड़ा अब 62 सीटों पर आ गया है। अब भाजपा को अपना दावा साबित करने के लिए उपचुनाव में सभी सीटें जितनी होगी। यह आसान नहीं है। बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव के साथ यह उपचुनाव है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में किसी भी दल के लिए विधायक को प्रत्याशी बनाने से खतरा यह है कि यदि कहीं चुनाव जीत गए, तो विधानसभा में एक सदस्य कम हो जाएगा।
100 फीसदी लक्ष्य हासिल करने का टारगेट
वर्तमान में छह विधायकों की डिस्क्वालिफिकेशन के बाद अब विधानसभा के भीतर आंकड़ा 28 और 34 विधायकों का है। अब विपक्षी दल भाजपा कांग्रेस को तभी चुनौती दे पाएगी, जब उपचुनाव में 100 फीसदी की सफलता हासिल करे। यदि कांग्रेस सभी सीटें उपचुनाव में जीत गई, तो सरकार खुद को जनप्रिय साबित कर सकती है। चुनाव शेड्यूल जारी होने के बाद मीडिया ब्रीफिंग में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी कहा कि वर्तमान स्थितियों में कोई भी पार्टी विधायकों को लोकसभा चुनाव में नहीं उतारेगी।
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