हिमाचल प्रदेश में आपदाओं की अति संवेदनशीलता के दृष्टिगत स्कूलों की सुरक्षा करनी होगी सुनिश्चित
पुरातन काल से ही शिक्षा मानव जीवन के विकास, उत्थान एवं प्रगति के लिए अति आवश्यक है, हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तर पश्चिम में बसा एक छोटा सा सुंदर एवं रमणीय स्थल है। इसकी आबादी लगभग 80 लाख के करीब है। यह प्रदेश अपने पर्यटन, शिक्षा एवं बागवानी के लिए पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। यदि हम शिक्षा क्षेत्र की बात करें तो हिमाचल प्रदेश संपूर्ण विकास और शिक्षा प्रदर्शन में पूरे देश में तीसरा सबसे बेहतर राज्य है व इसके साथ ही यदि हम प्राथमिक शिक्षा एवं शिक्षक एवं विद्यार्थी अनुपात की बात करें तो हिमाचल प्रदेश देश में केरल राज्य के बाद दूसरा सबसे अधिक शिक्षित राज्य है। हिमाचल प्रदेश की शिक्षा प्रतिशत की अगर बात करें तो स्वतंत्रता के समय यह 8% थी तथा वर्तमान में यह ऊंचाइयों को छूती हुई 88% तक पहुंच चुकी है, जो की अपने आप में एक हर्ष का विषय है। भारत के कुल क्षेत्रफल का 59% भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील है तथा इसके अंतर्गत हिमाचल प्रदेश का 32% क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से जोन 4 एवं जोन 5 अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र में सूचीबद्ध है, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, नई दिल्ली ने सन 2016 में स्कूल सुरक्षा नीति को जारी किया था, जिसमें की विभिन्न श्रेणियों के स्कूलों की सुरक्षा एवं योजनाओं को तैयार करने संबंधी विस्तृत बिंदुओं पर चर्चा एवं गाइडलाइंस जारी की गई हैं। आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 1995 में हरियाणा राज्य के डबवाली में आग लगने की घटना में कम से कम 425 लोग, जिसमें की ज्यादातर स्कूली बच्चे ही मारे गए थे, वर्ष 2001 में गुजरात राज्य के भुज में आए विनाशकारी भूकंप में 11000 से अधिक विद्यालय ध्वस्त हुए थे, तथा कुंभकोणम, तमिलनाडु राज्य में वर्ष 2004 में भयानक आग लगने से 93 बच्चों की मृत्यु हुई थी। स्कूल प्रशासन को यह बात सुनिश्चित करनी होगी कि विद्यालयों में उपयोग की जाने वाली स्कूली गाड़ियों तथा उनको चलाने वाले चालकों एवं परिचालकों के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी इकट्ठी की जाए, इसके अतिरिक्त उनके पास उक्त वाहनों को चलाने और प्रबंधन हेतु पूर्व में कोई अच्छा अनुभव है तभी उन्हें नियुक्ति दी जाए ताकि बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ ना हो सके। इसके अतिरिक्त उनकी दृष्टि क्षमता सही हो व शराब एवं अन्य प्रकार के नशे, मादक पदार्थों का उपयोग कर वे गाड़ी ना चलाएं तथा सभी सड़क नियमों का पालन कर ही हुए बच्चों को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाया जाये , उन्हें मार्गदर्शित किया जाए कि वे ओवर स्पीड एवं अन्य तरह की नकारात्मक ड्राइविंग करने से बचें, तथा किसी कानून का उल्लंघन न करता हो, इसके अतिरिक्त उन्हें इस बारे में समय-समय पर प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिए। स्कूल के सभी परिचालक एवं चालकों के दूरभाष नंबर भी सभी अभिभावकों एवं शिक्षकों के पास हर वक्त उपलब्ध रहने चाहिए, स्कूल प्रशासन को यह ध्यान भी देना चाहिए कि उनके स्कूल द्वारा 15 वर्ष से अधिक उपयोग की जा रही गाड़ियों को तुरंत प्रभाव से उपयोग में न लाया जाए, जिससे कि सड़क दुर्घटनाएं होने की संभावना कम हो सके। स्कूल प्रशासन को इस बारे में भी जागरूक रहना होगा कि विद्यालय एवं उसके आसपास के क्षेत्र से शरारती तत्वों द्वारा बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक शोषण न हो सके, एवं इस बारे में उनसे प्रतिदिन शिक्षक बातचीत के माध्यम से काउंसलिंग कर सकते हैं।
स्कूल प्रबंधन समिति को विद्यालय की आपदा प्रबंधन योजना तैयार करनी चाहिए व प्रतिवर्ष इसमें अपडेशन किया जाना चाहिए, इसके अतिरिक्त प्रत्येक विद्यालय में प्रतिवर्ष दो आपदा आधारित मॉक अभ्यास जो की आगजनी, भूकंप व अन्य तरह के स्थानीय आपदाओं पर आधारित हो करवाई जानी अति आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी विद्यालयों के पास पर्याप्त मात्रा में आपदा उपकरण उपलब्ध हों व उनको सही रूप से इस्तेमाल करने हेतु भी प्रशिक्षित व्यक्ति विद्यालय में उपस्थित होने चाहिए। स्कूल के पास उसकी अपनी सुरक्षित निकासी योजना तथा एक सुरक्षित खुले स्थान पर अधिक बच्चों को एकत्रित करने हेतु स्थान व राहत स्थल का का चयन होना चाहिए, विद्यालय के अंदर एवं बाहर के संभावित जोखिमों को कम करना एवं उनका शमन करना स्कूल प्रशासन की जिम्मेदारी है। यदि संभव हो सके तो प्रत्येक विद्यालय के मुख्य द्वार बाहर की ओर खुलने चाहिए, प्रत्येक वर्ष बच्चों को भूकंप की स्थिति में रुको, झुको, ढको का अभ्यास अवश्य कराया जाना चाहिए। विद्यालय की प्रमुख दीवार पर विभिन्न प्रकार के आपातकालीन दूरभाष नंबरों का लिखा होना आवश्यक है। हिमाचल सरकार द्वारा स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत एक स्कूल सुरक्षा प्रबंधन सूचना तंत्र प्रणाली (कंप्यूटर व मोबाइल आधारित एप्लीकेशन) की शुरुआत गत वर्ष 2023 (अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस-13 अक्टूबर) के उपलक्ष्य पर की गई थी, जिसमें की हिमाचल प्रदेश के लगभग 18383 स्कूल (2619 निजी स्कूल व 15393 सरकारी स्कूल), 47 केंद्रीय विद्यालय व जवाहर नवोदय विद्यालय तथा 20 अन्य तरह की श्रेणियां के अंतर्गत आने वाले स्कूलों की स्कूल आपदा प्रबंधन योजना इस ऐप के माध्यम से ऑनलाइन तैयार करने हेतु अभियान चलाया गया है। हिमाचल प्रदेश में प्रतिवर्ष बरसात की ऋतु में अत्यधिक जान- माल एवं अन्य नुकसान देखने को मिल रहा है तथा इसी वर्ष 2024 के इस बरसात के मौसम में एक सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1265 करोड़ रुपए का नुकसान का आकलन किया गया है जिसमें कि प्रदेश के स्कूल भी अछूते नहीं रहे हैं। चाहे हम बात करें शिमला के रामपुर स्थित समेज घटना व कुल्लू, मंडी आदि जिलों में भयानक आपदा देखने को मिली है। इस तरह से विद्यालयों में सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु उपरोक्त जानकारी को धरातल पर उपयोग में लाना होगा, तभी हम भविष्य में बच्चों एवं स्कूल में सुरक्षित माहौल को विकसित कर पाने में सफल हो पाएंगे। ध्यान रहे कि बच्चे किसी भी देश का भविष्य एवं रीड की हड्डी होते हैं वे न केवल अपने व्यक्तिगत निर्माण, प्रगति, व विकास बल्कि अपने देश की आर्थिक, सामाजिक स्थिति एवं विश्व पटल पर देश का नाम रोशन करने में भी हमेशा सक्षम व प्रतिबद्ध होते हैं।
” सौ बातों की एक बात ये है कि सुरक्षा एक अहम मुद्दा है, और स्कूलों को सुरक्षा इंतजाम दुरुस्त करने के लिए किसी घटना के होने का इंतजार नहीं करना चाहिए “
(लेखक)
राजन कुमार शर्मा
आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ
डी.सी कार्यालय, नाहन
राजन कुमार शर्मा
आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ
डी.सी कार्यालय, नाहन
जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश
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